भारत में अफोर्डेबल हाउसिंग का बाजार ₹67 लाख करोड़ के करीब, 2030 तक होगी 3.12 करोड़ सस्ते घरों की मांग
देश में सस्ते घरों के बाजार पर प्रॉपर्टी कंसल्टेंट नाइट फ्रैंक इंडिया ने एक रिपोर्ट जारी की है, जिसमें सस्ते घरों के मौजूदा बाजार का आकार, भविष्य की संभावनाओं, चुनौतियों समेत कई पहलुओं पर नजरिया पेश किया है.
भारत में शहरीकरण और रोजगार के अवसरों के चलते शहरों में 2 करोड़ 22 लाख घरों की जरूरत होगी. इस मांग का 95.2% हिस्सा जो कि 2.11 करोड़ युनिट है ये पूरी तरह से सस्ते घर होंगे. कुल मांग का 45.8% हिस्सा EWS परिवारों के बीच केंद्रित होगा. हालांकि ये सेग्मेंट पहले से ही देश में 1.01 करोड़ घरों की कमी को झेल रहा है. देश में सस्ते घरों के बाजार पर प्रॉपर्टी कंसल्टेंट नाइट फ्रैंक इंडिया ने एक रिपोर्ट जारी की है, जिसमें सस्ते घरों के मौजूदा बाजार का आकार, भविष्य की संभावनाओं, चुनौतियों समेत कई पहलुओं पर नजरिया पेश किया है. इसी रिपोर्ट के मुताबिक भारत में अफोर्डेबल हाउसिंग का बाजार ₹67 लाख करोड़ के करीब पहुंचने वाला है, आने वाले कुछ वर्षों में यानि लगभग 2030 तक देश में 3.12 करोड़ सस्ते घरों की मांग का अनुमान जताया गया है. इसके साथ ही शहरों में सस्ते किराए के घरों की मांग भी बढ़ने का अनुमान है. रिपोर्ट के मुताबिक 2030 तक भारत के इंडस्ट्री सेक्टर में 9.25 करोड़ कर्मचारियों की जरूरत होगी, एग्रीमेंट बेस्ड कर्मचारियों की संख्या 3.7 करोड़ तक पहुंचने की संभावना है जो अधिकतर प्रवासी होंगे और किराए पर रहना चाहेंगे.
डिमांड-सप्लाई और फाइनेंस
जाहिर है इतने बड़े स्तर पर घरों की मांग होगी तो इन्हें बनाने और खरीदने के लिए कर्ज की जरूरत भी पड़ेगी. कर्ज की जरूरत के चलते बैंकों और वित्तीय संस्थाओं के लिए अपार मौके बनेंगे. एक अनुमान के मुताबिक वर्तमान में भारत के अफोर्डेबल हाउसिंग लोन मार्केट का पोर्टफोलियो ₹13 लाख करोड़ का है. इसमें हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों का हिस्सा ₹6.9 लाख करोड़ और शेड्यूल्ड कमर्शियल बैंकों (Scheduled Commercial Banks) का हिस्सा ₹6.2 लाख करोड़ है. प्रीमियम घरों के मुकाबले सस्ते घर खरीदने वालों की लोन पर निर्भरता अधिक है. अगर 77% ऋण निर्भरता और अलग-अलग ऋण सीमा पर लोन-टू-वैल्यू (LTV) अनुपात को ध्यान में रखा जाए, तो बैंकों और हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों (HFCs) के लिए अफोर्डेबल हाउसिंग में संभावित फाइनेंसिंग के लिए लगभग ₹45 लाख करोड़ के अवसर बन सकते हैं.
विदेशी निवेश का कितना सपोर्ट?
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सस्ते घरों में विदेशी निवेश बहुत अधिक उत्साहजनक नहीं रहा है. नाइट फ्रैंक के आंकड़ों के मुताबिक 2011 से लेकर सितंबर 2024 तक अफोर्डेबल हाउसिंग सेक्टर में $1.6 अरब डॉलर का निवेश हुआ है. यह हाउसिंग सेक्टर में हुए कुल निवेश का सिर्फ 9.8% है और पूरे रियल एस्टेट सेक्टर में आए निवेश का सिर्फ 3.6% है. अफोर्डेबल हाउसिंग में आए कुल प्राइवेट इक्विटी निवेश का केवल 15% हिस्सा विदेशी निवेश से आया है. यही वजह है कि सस्ते घरों में निवेश की गति काफी धीमी रही है.
सस्ते घरों की कीमतें और ब्याज दर
नाइट फ्रैंक इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक मुंबई मेट्रो रीजन (MMR) में 30 वर्ग मीटर से छोटे घरों की औसत कीमत साल 2019 से लेकर 2024 के बीच 55% बढ़कर ₹17 लाख रुपये से ₹26 लाख रुपये हो गई है. 60 वर्ग मीटर से छोटे घरों की औसत कीमत साल 2019 में जहां ₹22 लाख हुआ करती थीं वो आज यानि 2024 में 48.3% बढ़कर ₹33 लाख पर पहुंच गई हैं. इसी तरह 160 वर्ग मीटर से छोटे घरों की औसत कीमत 2019 में ₹27 लाख से 29.2% बढ़कर ₹34 लाख हो चुकी है. सस्ते घरों के ज्यादातर खरीदार कर्ज पर निर्भर होते हैं. ऐसे में भारतीय रिजर्व बैंक के लोन कैटेगरी के मुताबिक मेट्रो शहरों में ₹45 लाख तक के घरों के लिए ₹35 लाख की लोन लिमिट है तो वहीं नॉन मेट्रो यानि छोटे शहरों में ये सीमा ₹30 लाख तक के घरों के लिए ₹25 लाख की लोन लिमिट है. हालांकि मुंबई शहर में फिलहाल एक अफोर्डेबल घर की औसत लॉन्च कीमत ₹48 लाख से बढ़कर ₹73 लाख पहुंच चुकी है जो कि RBI के प्राथमिकता क्षेत्र आवास के लिए निर्धारित सीमा से कहीं ज्यादा है.
सरकारी पहल और योजनाएं
भारत में सस्ते घरों की चर्चा देशस्तर पर तब जोर-शोर से शुरू हुई जब 2015 में प्रधानमंत्री मोदी ने प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY) का ऐलान किया. PMAY 1.0 के तहत 2022 तक सबको घर देने का लक्ष्य तय किया गया. 2024 में PMAY 2.0 का विस्तार हुआ और इस बार 3 करोड़ नए घर बनाने का लक्ष्य तय हुआ. प्रधानमंत्री आवास योजना के अंर्तगत अर्बन, ग्रामीण, अफोर्डेबल रेंटल हाउसिंग कॉम्पलेक्सेस (ARHCs) नेशनल अर्बन रेंटल हाउसिंग पॉलिसी (NURHP) जैसी योजनाएं लाई गईं. सरकार ने अफोर्डेबल हाउसिंग को सफल और आकर्षक बनाने के लिए बिल्डर और खरीदार दोनों के लिए कई तरह के प्रयास भी किए. जैसे, सस्ते घर बनाने वाले बिल्डरों के लाभ पर टैक्स छूट, सस्ता आसान कर्ज और घर खरीदारों के लिए होम लोन के ब्याज पर इंसेंटिव, लोन पर सब्सिडी, GST को घटाकर 1% करने समेत कई प्रयास हुए.
अफोर्डेबल हाउसिंग में चुनौतियां
PM आवास योजना के बाद अचानक सस्ते घरों की बिक्री में तेजी देखी गई लेकिन समय के साथ ये तेजी जाती रही. देश के टॉप 8 शहरों में साल 2018 में घरों की कुल बिक्री में जहां ₹50 लाख से कम कीमत के घरों का हिस्सा करीब 54% था वो घटकर 2024 में 25% पर सिमट गया है. इसके उलट बिक्री में ₹1 करोड़ से अधिक कीमत के घरों का हिस्सा करीब 16% से बढ़कर करीब 43% पर पहुंच गया है. इस दौरान लग्जरी घरों की डिमांड में जबर्दस्त तेजी देखी गई है, लिहाजा बिल्डर भी अच्छे मार्जिन की चाह में लग्जरी प्रोजेक्ट का रुख कर रहे हैं, और अफोर्डेबल प्रोजेक्ट्स से दूरी बनाते दिख रहे हैं.
कैसे मिले अफोर्डेबल हाउसिंग को बढ़ावा?
भले ही सस्ते घरों को लेकर सरकार की ओर से तमाम प्रयास किए गए हैं लेकिन पॉलिसी में और सुधार के साथ निजी भागीदारी को बढ़ाए बिना सबको घर या कहें सस्ते घरों के बाजार की राह थोड़ी कठिन है. शहरों में जमीन की ऊंची कीमतें बिल्डरों की प्राथमिकता बदल देती हैं. सस्ते घरों और लग्जरी प्रोजेक्ट की लागत में अंतर कम है लेकिन मुनाफे में भारी अंतर है लिहाजा बिल्डर लग्जरी सेग्मेंट बनाना पसंद करते हैं. जानकार मानते हैं सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (PSU) की खाली जमीन का इस्तेमाल कर निर्माण लागत घटाई जा सकती है. अगर सरकार डेवलपर्स के लिए मुफ्त FSI बढ़ाए तो सप्लाई 50% तक बढ़ सकती है और निर्माण लागत 24% घट जाएगी है. इसके साथ ही अफोर्डेबल हाउसिंग प्रोजेक्ट को प्रोत्साहित करने के लिए टैक्स छूट और सब्सिडी दी जानी चाहिए. बड़े शहरों के आस-पास सैटेलाइट शहरों को तेजी से डेवलप करने की जरूरत है. साथ ही घर खरीदने वालों को और अधिक प्रोत्साहित करने की जरूरत है. ऐसे कई कदम हैं जो अफोर्डेबल हाउसिंग में तेजी ला सकते हैं.
03:55 PM IST